Ram Temple: जनकपुर से अयोध्या पहुंची शालिग्राम शिला, जय श्रीराम के जयघोष से गूंजी रामनगरी

अयोध्या: पूरे देश की निगाहें इन दिनों अयोध्या पर टिकी हैं. अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का दिव्य और भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. मंदिर निर्माण में भगवान के स्वरूप को लेकर इन दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. नेपाल से सड़क मार्ग के रास्ते लगभग 127 कुंटल की शालिग्राम की शिला अयोध्या पहुंच गई हैं. जहां ब्राह्मणों की मौजूदगी में वैदिक विधि-विधान पूर्वक शिलायो का पूजा-अर्चना किया गया 

नेपाल की पवित्र काली नदी से ये पत्थर निकाले गए थे. अभिषेक और विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद शिला को 26 जनवरी को अयोध्या के लिए रवाना किया गया था. इस दौरान यह बिहार के रास्ते उत्तर प्रदेश में कुशीनगर और गोरखपुर होते हुए बुधवार को अयोध्या पहुंची है. हालांकि इस शिला से भगवान राम की प्रतिमा बनेगी या नहीं बनेगी इस पर अंतिम मोहर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट लगाएगा. लेकिन फिलहाल आपके मन में यह सवाल जरूर चल रहा होगा कि राम जन्म भूमि में भगवान राम की जिस स्वरुप में प्राण प्रतिष्ठा किया जाएगा. उस के लिए आखिर नेपाल से ही क्यों शिला लाई जा रही हैं. तो चलिए आज आपको इस रिपोर्ट के माध्यम से बताते हैं आखिर करोड़ों वर्ष पुराने शालिग्राम शिला की क्या है खासियत.

शालिग्राम शीला में होता है श्री हरि विष्णु का वास
रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास के मुताबिक शालिग्राम शिला सनातन धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. क्योंकि हर मठ मंदिरों में शालिग्राम का पत्थर पाया जाता है. जिसमें भगवान विष्णु का वास होता है. शालिग्राम शिला नेपाल के पवित्र गंडकी नदी में पाया जाता हैं. इसके साथ ही धार्मिक मान्यता के मुताबिक कि एक बार भगवान विष्णु ने वृंदा अर्थात तुलसी के पति शंखचूड़ को छल से मार दिया था. वृंदा को इस बात का पता चला तो उन्होंने विष्णु को पाषाण होकर धरती पर निवास करने का श्राप दिया. चूंकि वृंदा श्रीहरि की परम भक्त थी, तुलसी की तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने कहा कि तुम गंडकी नदी के रुप में

जानी जाओगी और मैं शालिग्राम बनकर इस नदी के पास वास करुंगा. कहते हैं कि गंडकी नदी में जो शालिग्राम शिला है उन पर चक्र, गदा का चिन्ह पाए जाते हैं.

इस पत्थर की नहीं होती प्राण प्रतिष्ठा
पूरे देश के लगभग सभी मठ-मंदिरों में शालिग्राम पत्थर की मूर्ति बनाई जाती हैं. मान्यता यह भी है कि इस पत्थर की प्राण -प्रतिष्ठा नहीं की जाती. अन्य पत्थरों के अपेक्षा इस पत्थर में भगवान विष्णु स्वयं वास करते हैं. इसके अलावा इस पत्थर का रिश्ता माता तुलसी से भी है. इस वजह से इस पत्थर की पूजा अधिकतर मंदिरों में की जाती है

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