Shibu Soren: एक आवाज पर ‘कांपती’ थी सरकार, कैसे बनी दिशोम गुरु की छवि, झारखंड के महानायक शिबू सोरेन को दुमका से क्या मिला?

दुमका। अखंड बिहार में हजारीबाग और अब रामगढ़ के गोला से सटे नेमरा गांव में 11 जनवरी 1944 में जन्में शिबू सोरेन अपनी संघर्ष और आंदोलनों के दम पर राजनीति की दुनिया में फर्श से अर्श को हासिल किए थे।

स्व.शिबू सोरेन स्व.प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली केंद्र की सरकार में दो बार कोयला मंत्री बनाए गए थे। झारखंड में तीन बार मुख्यमंत्री बनाए गए थे। दुमका संसदीय सीट से आठ बार सांसद के अलावा जामा विधानसभा से एक बार विधायक चुने गए थे। तीन बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए। वर्तमान में वह राज्यसभा के सदस्य ही थे।

“38 साल तक झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष”
वर्ष 1987 से लेकर 2025 तक अनवरत 38 साल तक झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष रहने के बाद इसी वर्ष संस्थापक संरक्षक बनाए गए थे। शिबू सोरेन की जगह अब उनके पुत्र हेमंत सोरेन झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष हैं।

वर्ष 1995 में अलग झारखंड राज्य का पहला पड़ाव जैक का अध्यक्ष भी शिबू सोरेन को ही बनाया गया था। यही वजह है कि गुरुजी की छवि झारखंड ही नहीं पूरे देश में एक जननेता के तौर पर स्थापित थी।

आदिवासियों के बीच दिशोम गुरु की छवि बनाने वाले शिबू सोरेन महाजनों के द्वारा अपने पिता सोबरन मांझी की हत्या से उद्वेलित होकर महज 13 से 14 साल की आयु में ही महाजनों के खिलाफ आदिवासी, मूलवासी, दलित, पिछड़ों के हक-हकूक व अधिकारों की लड़ाई छेड़ दी थी।

यही आंदोलन व संघर्ष से तैयार जमीन आगे चलकर शिबू सोरेन की राजनीतिक थाती बन गई और उनकी पार्टी झामुमो आज झारखंड की सत्ता का नेतृत्व कर रहा है। उनके पुत्र हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री हैं।

शिबू सोरेन की विशिष्ट पहचान अलग झारखंड राज्य गठन के साथ गांवों में बसे आदिवासी-मूलवासी, दलित व पिछड़ों की जमीन हथियाने वाले महाजनों के खिलाफ धान कटनी आंदोलनों से जुड़ी है। जल, जंगल और जमीन की लड़ाई और अलग झारखंड राज्य के लिए इन्होंने 40 साल तक संघर्ष किए थे।

आंदोलन के दौरान इनका अधिकांश समय जंगलों और पहाड़ों पर गुजरता था। आंदोलन के दौर में हत्या समेत कई संगीन मामलों में आरोपित बनाए गए थे। कानूनी दांव-पेंच में फंसे भी और जेल भी गए, लेकिन न्याय पर गहरी आस्था रखने वाले शिबू सोरेन को चाहे चीरुडीह हत्याकांड हो, शशिनाथ झा की हत्या से जुड़ा मामला हो या फिर पीवी नरसिम्हा राव के दौरान सांसद रिश्वत प्रकरण हरेक मामले में इन्हें न्याय मिली थी।

सबसे अहम यह कि चार दशक के आंदोलनों व संघर्षों के दम पर 15 नवंबर 2000 में जब अलग झारखंड राज्य गठन का सेहरा इनके सिर बंधा तो पूरा झारखंड ही नहीं देश ने दिशोम गुरु यानी देश का गुरु के आंदोलन व संघर्ष को सैल्यूट किया था।

“धुन के पक्के शिबू झारखंड के राजनीतिक केंद्र में रहे”
धुन के पक्के शिबू सोरेन को झारखंड आंदोलन के दौरान गिरफ्तार करने या देखते ही गोली मारने तक का आदेश दिया गया था। इसके बावजूद शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलन को कमजोर नहीं होने दिया। लड़ाई लड़ते चले गए।

आंदोलन के दौर में उनकी एक आवाज पर पूरा झारखंड बंद हो जाता था। हजारों लोग सड़कों पर उतर जाते थे। तब अखंड बिहार के झारखंड के विभिन्न हिस्सों में आर्थिक नाकेबंदी से लेकर दिल्ली तक अलग राज्य के लिए आंदोलन की गूंज से केंद्र व बिहार राज्य की सरकारें भी सकते में पड़ जाती थी।

समय व जनता के नब्ज को समझने वाले शिबू सोरेन ने आंदोलन के साथ हक व अधिकारों को हासिल करने के लिए राजनीति के क्षेत्र में कदम रखने का ठोस निर्णय विनोद बिहारी महतो और एके राय जैसे मंझे हुए नेताओं से मुलाकात के बाद लिए थे।

चार फरवरी वर्ष 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किए थे। इससे ठीक पहले वर्ष 1969 में शिबू सोरेन की पहचान एक सशक्त आंदोलनकारी के अलावा समाज सुधारक के तौर पर जन-जन में हो चुका था।

इसी कालखंड में शिबू सोरेन सोनत संताली समाज नामक एक संगठन बनाकर आदिवासी समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए जागरूक अभियान चला रहे थे। शराब सेवन पर पाबंदी व शिक्षा को हथियार बनाने के लिए समाज को जागृत कर रहे थे।

इसके लिए इन्होंने गिरिडीह के टुंडी के पास पोखरिया में आश्रम का निर्माण किए थे। शिबू सोरेन इसी आश्रम में रहकर आदिवासियों के उत्थान व इन्हें आत्मनिर्भर बनाने, जल संरक्षण, कृषि व शिक्षा को लेकर कई कार्यक्रम चला रहे थे।

शिबू सोरेन के यह प्रयाेग गांव-गांव में सफल हो रहा था और तब देश के कई प्रमुख अर्थशास्त्री और पत्रकार इन इलाकों का दौरा कर शिबू सोरेन के आर्थिक-समाजिक विकास का मॉडल का अध्ययन करने पहुंचे थे।

जब शिबू सोरेन टुंडी के जंगलों में महाजनों के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे, पूरे क्षेत्र में उनकी समानांतर सरकार चलती थी। तब तत्कालीन स्व. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन पर अंकुश लगाने का आदेश दिया था।

जब शिबू सोरेन के कार्यों के बारे में उन्हें जानकारी मिली तो उन्हें मिलने के लिए दिल्ली बुलाया था।आदिवासी हित में काम करने की सलाह दी थी। इसी दौर में शिबू सोरेन सक्रिय राजनीति में भी कदम रखे थे।

वर्ष 1977 में पहली बार चुनावी राजनीति की शुरुआत टुंडी विधानसभा से की और उस चुनाव में इन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद शिबू सोरेन संताल परगना के दुमका लोकसभा को अपना राजनीतिक कर्मभूमि बनाया और पहली बार वर्ष 1980 में यहां से चुनाव लड़ कर कांग्रेस के पृथ्वीचंद किस्कू को हराया और पहली बार दिल्ली पहुंचे थे।

इसके बाद शिबू सोरेन कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे। वह दुमका सीट से वर्ष1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में सांसद चुने गए। इसके अलावा गुरुजी तीन बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे।

“अब एक नज़र शिबू सोरेन के राजनीतिक सफर पर”

  • दुमका से लोकसभा सदस्य- 1980, 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014
  • राज्यसभा सांसद- वर्ष 1998, 2002 और 2020
  • केंद्रीय कोयला मंत्री- वर्ष 2004 से 2006 के बीच
  • ⁠⁠⁠झारखंड के मुख्यमंत्री- वर्ष 2005 – दो मार्च 2005 से 12 मार्च 2005 तक, 27 अगस्त 2008 से 18 जनवरी 2009 एवं 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक
  • ⁠जैक के अध्यक्ष- वर्ष 1995
  • ⁠झामुमो के अध्यक्ष- वर्ष 1987 से 2025
  • ⁠झामुमो के संस्थापक संरक्षक- 2025