सैम मानेकशॉ का 108वां जन्मदिन:पहले फील्ड मार्शल के सामने 90 हजार पाक सैनिकों ने किया सरेंडर, इनकी लाइफ स्टोरी है फिल्म सैम बहादुर

भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ (Marshal Sam Manekshaw) का जन्म 3 मई 1914 को हुआ था, उनका पूरा नाम सैम होर्मुजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ (Sam Hormuji Framji Jamshedji Manekshaw) था. लेकिन, उन्हें इस नाम से कम ही पुकारा जाता था. सैन के दोस्त, पत्नी आज सभी अधिकारी उन्हें सैम या “सैम बहादुर” कहते थे. सैम पहली बार 1942 में प्रसिद्ध हुए क्योंकि एक जापानी सैनिक ने अपनी मशीन गन से उनकी आंतों, लीवर और गुर्दे में सात बार गोली मारी थी. चलिए जयंती के मौके पर पढ़िए उनके जीवन और शौर्य की कहानियां जो बेहद रोचक होने के साथ-साथ प्रेरक भी हैं. ऐसे में अब सैम मानेकशॉ की जिंदगी में बनी बोयोपिक में विक्की कौशल उनका किरदार करते हुए नजर आ रहे हैं औऱ इसका टीजर हाल ही में सामने आया है, ऐसे में चलिए जानते हैं कि कौन है सैम मानेकशॉ जिन्होंने पाकिस्तान की चिथड़े उड़ा दिए थे.

पिता के खिलाफ सेना में भर्ती
सैम का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में हुआ था. सैम के पिता डॉ. होर्मुसजी मानेकशॉ थे। नैनीताल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद, उन्होंने हिंदू सभा कॉलेज से चिकित्सा शिक्षा प्राप्त की. अपने पिता की अवज्ञा में, मानेकशॉ ने जुलाई 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी में दाखिला लिया और दो साल बाद 4/12 फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट में शामिल हो गए, उन्हें छोटी उम्र में ही युद्ध में शामिल होना पड़ा था. वर्ल्ड वॉर 2 से उन्होंने अपनी सर्विस स्टार्ट की थी और उन्होंने अपने पूरे करियर के दौरान 5 युद्ध में हिस्सा लिया.

द्वितीय विश्वयुद्ध में लगी थी 7 गोलियां

सैम को अपने सैन्य करियर के दौरान कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, उन्हें छोटी उम्र में ही युद्ध में शामिल होना पड़ा था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सैम के शरीर में 7 गोलियां लगी थीं. सभी ने उनके बचने की उम्मीद छोड़ दी थी. हालांकि डॉक्टरों ने समय रहते सभी गोलियां निकाल दीं और उसकी जान बचा ली.

सैम का जवाब सुनकर इंदिरा गांधी हैरान रह गईं
इंदिरा गांधी और सैम मानेकशॉ की ये कहानी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है. दरअसल, 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पाकिस्तान पर हमला करना चाहती थीं, लेकिन जनरल सैम ने पाकिस्तान के साथ युद्ध में जाने से साफ इंकार कर दिया. सैम ने इंदिरा गांधी से कहा कि इस बार हमारी सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं है. सेना को प्रशिक्षण के लिए कुछ समय चाहिए. यह सुनकर इंदिरा गांधी स्तब्ध रह गईं, उन्होंने सेना के प्रशिक्षण के लिए कुछ समय दिया और 1971 में सैम के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान सेना का मुकाबला किया.

जब मानेकशॉ ने किए पाकिस्तान के दो टुकड़े
जब पाकिस्तान से 1971 का वॉर हुआ था उस दौरान सैम की इतनी तूती बोलती थी कि कोई भी उनकी बात नहीं काटता था. सैम मानेकशॉ वो नाम थे जिन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े किए थे, उन्हें साल 1971 वॉर में मिली जीत का सबसे बड़ा हीरो माना जाता है. एक विदेशी अखबार को दिए इंटरव्यू में आर्देशिर कावसजी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े वाला किस्सा बताया था.इसी जंग में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण भी किया

फील्ड मार्शल की उपाधि पाने वाले पहले भारतीय जनरल
सैन मानेकशॉ को अपने सैन्य करियर के दौरान कई सम्मान प्राप्त हुए थे. 59 साल की उम्र में उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया था.यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय जनरल थे. 1972 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. एक साल बाद 1973 में वे आर्मी चीफ के पद से रिटायर हुए. सेवानिवृत्ति के बाद वे वेलिंगटन चले गए,2008 में वेलिंगटन में उनका निधन हो गया.

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