दिल्ली पुलिस ने इंटरनेशनल किडनी ट्रांसप्लांट गिरोह का खुलासा किया है।

दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल में सेवाएं दे रही डॉक्टर विजया कुमारी गैंग क़ी सरगना निकली। जो गरीब लोगो से 5 लाख में किडनी का सौदा कर 25 से 30 लाख में बेचते थे।

DCP अमित गोयल ने बताया कि हमने एक डॉनर्स और रिसीवर को भी गिरफ्तार किया है। रैकेट में शामिल रसेल नाम का एक व्यक्ति मरीजों और डॉनर्स की व्यवस्था करता था। वे प्रत्येक ट्रांसप्लांट के लिए 25-30 लाख रुपए लेते थे। यह रैकेट 2019 से चल रहा था।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गिरफ्तार महिला डॉक्टर की पहचान 50 साल की डॉ विजया कुमारी के रूप में हुई है। वो फिलहाल निलंबित हैं। वह ऑर्गन ट्रांसप्लांट रैकेट के साथ काम करने वाली अकेली डॉक्टर हैं। उन्होंने नोएडा स्थित यथार्थ अस्पताल में 2021-23 के दौरान लगभग 15-16 ऑर्गन ट्रांसप्लांट किए थे।

डॉ विजया ने 15 साल पहले इंद्रप्रस्थ अपोलो जॉइन किया था
सूत्रों ने बताया कि डॉ विजया कुमारी एक सीनियर कंसल्टेंट और किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन हैं। उन्होंने 15 साल पहले जूनियर डॉक्टर के तौर पर इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल जॉइन किया था। वह अस्पताल में फी-फॉर-सर्विस यानी काम के आधार पर पैसों, पर काम करती थीं। वह अस्पताल की रेगुलर कर्मचारी नहीं थी। पुलिस ने डॉ विज

यथार्थ अस्पताल का दावा- डॉ विजया अपने मरीज खुद लाती थी
नोएडा के यथार्थ अस्पताल के एडिशनल सुपरिटेंडेंट, सुनील बालियान ने बताया कि डॉ विजया उनके अस्पताल में विजिटिंग कंसल्टेंट के रूप में काम कर रही थीं। वह सिर्फ उन्हीं मरीजों का किडनी ट्रांसप्लांट करती थीं, जिन्हें वह खुद लेकर आती थी। अस्पताल की तरफ से उन्हें कोई मरीज नहीं दिया जाता था। डॉ विजया ने पिछले तीन महीनों में एक सर्जरी की थी।

डोनर से 4-5 लाख, रिसीवर से 25-30 लाख में होता था सौदा
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, डॉ विजया कुमारी और रैकेट से जुड़े अन्य लोग बांग्लादेश के मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट के लिए पैसों लालच देते थे। वे किडनी के बदले डोनर को 4-5 लाख रुपए देते थे। वहीं जिसे किडनी दिया जाता था, उससे 25-30 लाख रुपए लिए जाते थे।

दिल्ली के बड़े अस्पतालों में किडनी ट्रांसप्लांट का पूरा खेल चलता था। सबसे पहले दिल्ली में बांग्लादेश हाई कमीशन के नाम पर फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए थे। इसके आधार पर दावा किया जाता था कि कि डॉनर और रिसीवर (दोनों बांग्लादेशी) के बीच संबंध है। क्योंकि भारतीय कानून के अनुसार डॉनर्स और रिसीवर के बीच संबंध होना जरूरी है। पुलिस ने ये फर्जी दस्तावेज भी जब्त किए हैं।

मेडिकल टूरिज्म कंपनी रहने-इलाज की व्यवस्था करती थी
29 साल का रसेल बांग्लादेश के कुश्तिया जिले का रहने वाला है। वह बांग्लादेश में अपने सहयोगियों- मोहम्मद सुमोन मियां, इफ्ती और त्रिपुरा स्थित रतीश पाल के साथ मिलकर वहां से डोनर्स को दिल्ली बुलाता था। फिर डोनर और रिसीवर, अल शिफा नाम की एक मेडिकल टूरिज्म कंपनी के जरिए दिल्ली में अपने रहने, इलाज और बाकी चीजों का इंतजाम करवाते थे।

पुलिस ने इफ्ती को छोड़कर बाकी सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। सभी आरोपी पहली बार दिल्ली आए हैं और वे हर ट्रांसप्लांट के लिए डॉक्टर को 2-3 लाख रुपए दे रहे थे। इससे पहले जून में तीन बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया था।

इस दौरान वहां रसेल के दो साथी- मियां (28) और मोहम्मद रोकोन (26) भी वहीं थे। रसेल के कमरे से एक बैग बरामद किया गया है, जिसमें नौ पासपोर्ट, दो डायरियां और एक रजिस्टर था। ये पासपोर्ट किडनी डोनर्स और रिसीवर्स के थे। डायरी में पैसों के लेनदेन की जानकारी भी थी।



रसेल के फ्लैट पर डोनर-रिसीवर की मुलाकात होती थी

पुलिस ने मोहम्मद रोकोन के पास से एक और बैग जब्त किया है, जिसमें 20 स्टाफ और दो स्टांप इंक पैड (नीले और लाल) थे, जिनका इस्तेमाल कथित तौर पर नकली कागजात बनाने के लिए किया जाता था। पुलिस ने रोकोन को भी गिरफ्तार किया है।

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