CG.NEWS:पुलिस की कैसी आज़ादी – पुलिस कर्मचारियों के साथ जारी भेदभाव और विसंगतियाँ क्यों है – उज्ज्वल दीवान

रायपुर प्रेस क्लब में सँयुक्त पुलिस कर्मचारी एवं परिवार कल्याण संघ के अध्यक्ष उज्जवल दीवान ने पत्रकार वार्ता कर पुलिस विभाग में व्याप्त अनियमितताओं, जवानों के अधिकारों व सुधार को लेकर शासन व पुलिस प्रशासन पर सीधे सवाल उठा दिए हैं जिसमें मुख्य रूप से निम्न बिंदु रखे गए थे

प्रस्तावना:
आजादी के 79 वर्ष पूरे हो जाने के बावजूद, देश की कानून-व्यवस्था संभालने वाले पुलिस विभाग के तृतीय श्रेणी के छोटे कर्मचारियों की स्थिति बेहद चिंताजनक और दयनीय है। “कैसी आज़ादी” — यह सवाल हम आज उठाते हैं, क्योंकि समाज का वह वर्ग जो पुलिस कहलाता है 12 माह, दिन-रात, 24 घण्टे जनता की सुरक्षा व सेवा में तैनात है, वह पुलिस ही अपने बुनियादी सुविधाओं और न्याय से वंचित है यदि न्याय पाने के लिए तृतीय श्रेणी पुलिस कर्मचारियों, नगरसेना के जवानों व जेल विभाग के कर्मचारियों को हर बार माननीय उच्च न्यायालय और माननीय सर्वोच्च न्यायालय ही जाना पड़ रहा है तो कैसी आजादी है।

मुख्य बिंदु:

1) नए कानून के हिसाब से विवेचकों को बड़े अपराधों की विवेचना के बाद चालान प्रस्तुत करने हेतु पेनड्राइव दिया जाए अभी नही दिया जाता है विवेचक अपने पैसों से पेनड्राइव खरीद कर न्यायालय में जमा कर रहे हैं।
2) समयमान-वेतनमान के साथ पदोन्नति दी जाए जिससे आरक्षक पदोन्नत हो कर प्रधान आरक्षक बनेंगे जिसके कारण लंबित अपराधों का निराकरण जल्दी होगा तथा विवेचकों की संख्या भी बढ़ेगी।
3) पौष्टिक आहार भत्ता मात्र ₹100 प्रति माह दिया जाता है, 79 साल की आजादी के बाद भी पुलिस जवानों को मात्र ₹100 प्रति माह पौष्टिक आहार भत्ता दिया जाता है। यह राशि आज के महंगाई के दौर में दिन के एक समय के भोजन के खर्च के बराबर भी नहीं है।
4) पुराने समय की भत्ता व्यवस्था कार और मोटरसाइकिल के जमाने में आज भी पुलिस कर्मचारियों को वाहन भत्ता नही दिया जा रहा है, और सभी कार्य तुरंत करवाना चाहते हैं जो कि वास्तविक परिवहन व्यवस्था और खर्च से मेल नहीं खाता।
5) वेतन में असमानता है पुलिस के सिपाही की तनख्वाह आज भी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के बराबर है, जबकि कार्य की कठिनाई, जोखिम और जिम्मेदारी उससे कहीं अधिक है।
6) सरकारी आवास की कमी है ज्यादातर पुलिस कर्मियों को सरकारी आवास उपलब्ध नहीं होता। जो हाउस रेंट दिया जाता है वह मात्र ₹ 1500-2000 प्रति माह है, जबकि बाजार में किराया ₹5000-7000 या उससे अधिक है।
7) बड़े अधिकारियों और छोटे कर्मचारियों के बीच भेदभाव है बड़े अधिकारी गलती करने पर भी बच जाते हैं लेकिन छोटे कर्मचारियों पर तुरंत कार्यवाही कर दी जाती है। जिसके कारण छोटे कर्मचारी को छोटी-छोटी गलतियों पर कड़ी सजा दी जाती है, जिससे उनका भविष्य प्रभावित होता है।
8) पदोन्नति में भेदभाव है बड़े अधिकारियों की समय पर पदोन्नति हो जाती है परंतु छोटे कर्मचारियों को कई-कई वर्षों तक पदोन्नति नहीं मिलती, जिससे उनका मनोबल टूट जाता है। आरक्षक से प्रधान आरक्षक व प्रधान आरक्षक से सहायक उपनिरीक्षक के पदोन्नति की SOP अभी तक नही बना पाए हैं। और जो नियम बनाए जाते हैं उसे अधिकारी अपनी मर्जी से बनाते हैं, राज्य शासन के नियमों को नही मानते हैं जिसमें सिर्फ छोटे कर्मचारियों का नुकसान होता है।
9) कार्य के घंटे निश्चित नहीं है, छुट्टियों की कमी है। शासन द्वारा दिये जाने वाला साप्ताहिक अवकाश भी बन्द कर दिया जाता है, ड्यूटी के दौरान उचित स्वास्थ्य सुविधाओं और सुरक्षा उपकरणों की कमी है, विभागीय कार्यवाही में पारदर्शिता का अभाव है।

हमारी मांगें:

1) पुलिस आरक्षक का वेतनमान 2800 रुपये ग्रेड पे किया जाए जैसा कि 65 विधायकों व 7 सांसदों ने शासन को लिख कर दिया था तथा समस्त भत्तों को वर्तमान महंगाई दर के अनुरूप बढ़ाया जाए।
2) परिवहन भत्ता दिया जाए व समस्त भत्तों को वर्तमान महंगाई दर के अनुरूप बढ़ाया जाए। तथा बाहर जाने वाले कर्मचारियों को होटल में रुकने का भत्ता एडवांस में दिया जाए।
3) समस्त सहायक आरक्षकों को डीएसएफ आरक्षक बनाया जाए तथा डीएसएफ जवानों के परिजनों को अनुकम्पा नियुक्ति दी जाए व डीएसएफ जवानों को पुलिस आरक्षकों के बराबर 1900 रुपये ग्रेड पे के हिसाब से वेतन दिया जाए।
4) सभी कर्मचारियों को समान अवसर के साथ समय पर पदोन्नति दी जाए।
5) सरकारी आवास की उपलब्धता बढ़ाई जाए या हाउस रेंट को बाजार दर के अनुसार संशोधित किया जाए।
6) विभागीय दंड प्रणाली में पारदर्शिता और समानता सुनिश्चित की जाए।
7) कार्यस्थल पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और जीवन-यापन से जुड़ी सुविधाओं को प्राथमिकता दी जाए।
8) नगरसेना के जवानों को मध्यप्रदेश के आधार पर वेतन दिया जाए तथा प्रति वर्ष 5% वेतन वृद्धि के शासन आदेश का पालन किया जाए।
9) जेल विभाग के जवानों को समस्त वेतन भत्ते व सुविधाएं जिला पुलिस बल के समान दिया जाए।
10) स्तानन्तरण नीति स्पष्ट किया जाए व सभी के ऊपर समान प्रकार से लागू किया जाए।
समापन:
आजादी का अर्थ केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय भी है। पुलिस विभाग के छोटे कर्मचारी तभी अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वाह कर पाएंगे जब उन्हें उचित सम्मान, वेतन, सुविधाएं और समान अवसर मिलेंगे। यह प्रेस वार्ता किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के उन पुलिस कर्मचारियों की आवाज है, जो आज भी भेदभाव, विसंगति और अन्याय का सामना कर रहे हैं।

इन दो अतिमहत्वपूर्ण बिंदुओं को प्रेस वार्ता में अलग से प्रभावशाली तरीके से शामिल कर रहा हूँ ताकि यह स्पष्ट संदेश प्रशासन व जनप्रतिनिधियों तक पहुँच सके।

अतिरिक्त मुद्दे (विभागीय जांच संबंधी):
1) अप्रमाणित विभागीय जांच में दिया गया दंड रद्द हो कई पुलिस कर्मियों को बिना पर्याप्त साक्ष्य और बिना विभागीय जांच के नियमों का सही पालन किए दंड दे दिया गया है। ऐसे मामलों में दंड को तुरंत रद्द करते हुए संबंधित कर्मचारियों की सेवा पुस्तिका (Service Book) से हटाया जाए, ताकि उनकी पदोन्नति और भविष्य पर गलत प्रभाव न पड़े।
2) पीठासीन (जांचकर्ता) अधिकारी के विरुद्ध कानून सम्मत कार्यवाही की जाए।
जहां-जहां विभागीय जांच में पीठासीन अधिकारी द्वारा कानून और प्रक्रिया का उल्लंघन कर कर्मचारियों के साथ अन्याय किया गया है, वहां उनके खिलाफ कानून सम्मत दंडात्मक कार्यवाही की जाए। इससे भविष्य में कोई भी अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग कर किसी भी कर्मचारी का मानसिक, आर्थिक और शारीरिक, व्यावसायिक शोषण न कर सके।