बीजेपी सांसद ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि सीएम केजरीवाल को पत्र लिख कर यह मांग की है कि मस्जिदों के मौलवियों की तरह मंदिर के पुजारियों और गुरुद्वारा के ग्रंथियों को भी 42 हजार रुपये की तनख्वाह उपलब्ध कराई जाए. इस पत्र में परवेश सिंह ने कहा, हमारे संविधान की प्रकृति धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है.
प्रवेश साहिब सिंह ने अपनी चिट्ठी में कहा कि टैक्स भुगतान करने वालों से जो पैसे आ रहे हैं उन्हें सिर्फ किसी चुने हुए या समाज के किसी एक धार्मिक वर्ग पर खर्च नहीं करना चाहिए. जनता के पैसों पर सभी धार्मिक वर्गों का समान अधिकार है. इस वजह मैं आपसे यह अपील करता हूं कि जिस तरह मस्जिद के मौलवियों को वेतन दिया जा रहा है उसी तरह मंदिरों के पुजारी और गुरुद्वारा के ग्रंथियों को भी 42,000 रुपये की सैलरी दी जाए.
दिल्ली में पुजारियों को वेतन देने की मांग नई नहीं है. इससे पहले भी यह मामला साल 2021 में प्रकाश में आया था. बीजेपी ने इस मसले पर दिल्ली सरकार का जमकर घेराव किया था. उस समय भी बीजेपी नेताओं ने कहा था कि जब मस्जिद की देखभाल करने वाले काजियों और इमामों को वेतन दिया जा सकता है तो मंदिर के पुजारियों को सैलेरी क्यों नहीं दी जा सकती है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मौलवियों को दी जाने वाली सैलेरी की जानकारी को लेकर RTI एक्टिविस्ट सुभाष अग्रवाल ने दिल्ली सरकार से पूछा था कि मस्जिदों के इमामों पर कितना खर्च होता है और यह भार किसके ऊपर आता है. इस सवाल का जवाब नहीं मिलने पर केंद्रीय सूचना आयोग ने LG और सीएम दफ्तर के अधिकारियों को समन भेजा था.