चित्रकूट: सदियों से हिंदुओं की आस्था का केंद्र चित्रकूट रहा है, जहां कभी भगवान श्रीराम ने देवी सीता और लक्ष्मणजी के साथ अपने वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थे. प्रभु श्रीराम की तपोस्थली चित्रकूट में एक ऐसा मंदिर है,जहां भगवान राम के ही स्वरूप कामतानाथ विराजमान हैं. मान्यता है कि यहांभक्तों की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं.
हम बात कर रहे है चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत की. यहां बने कामदगिरि मंदिर में भगवान राम के ही स्वरूप कामतानाथ विराजमान हैं. मान्यता है कि त्रेतायुग में जब भगवान राम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण सहित वनवास के लिए गए तो उन्होंने अपने 14 वर्षों के वनवास में लगभग साढ़े 11 वर्ष चित्रकूट में ही व्यतीत किए थे. इस दौरान चित्रकूट साधु-संतों और ऋषि-मुनियों की पसंदीदा जगह ये पहाड़ बन गया था. इसके बाद भगवान राम ने चित्रकूट छोड़ने का निर्णय लिया था. भगवान प्रभु राम के इस निर्णय से चित्रकूट पर्वत दुःखी हो गया और भगवान राम से कहा कि जब तक वो वनवास के दौरान यहां रहे. तब तक यह भूमि अत्यंत पवित्र मानी जाती रही लेकिन उनके जाने के बाद इस भूमि को कौन पूछेगा?
भगवान राम ने पर्वत को दिया था वरदानभगवान राम ने पर्वत को वरदान दिया और कहा कि अब आप कामद हो जाएँगे और जो भी आपकी परिक्रमा करेगा. उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी हो जाएँगी और हमारी कृपा भी उस पर बनी रहेगी. इसी कारण इस पर्वत को कामदगिरि कहा जाने लगा और वहां विराजमान हुए कामतानाथ भगवान राम के ही स्वरूप हैं.कामदगिरि की एक विशेषता है कि इसे कहीं से भी देखने पर इसका आकार धनुष की भाँति ही दिखाई देता है.
पर्वत पर भागवान राम की है विशेष कृपाकामतानाथ मंदिर के पुजारी नीरज मिश्रा ने बताया कि प्रभु श्री राम जब चित्रकूट से जाने लगे तब चित्रकूट गिरी ने प्रार्थना की. हे भगवान अब आप जा रहे हैं अब हम रहेंगे कैसे? तब भगवान राम ने यह आशीर्वाद दिया कि आज से आप कामद हो जाएंगे और अपना ही स्वरूप उनको दे दिया. उन्होंने आशीर्वाद दिया कि आज से आप अभी की इच्छाओं की पूर्ति करेंगे और आज से आप चारों फलों के दाता होंगे और आपका नाम कामदगिरि कामतानाथ होगा. चित्रकूट का यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है, कामदगिरि पर्वत की तलहटी में, जिसकी परिक्रमा करने के लिए देशभर से श्रद्धालु आते हैं.