Toran Kumar reporter..6.7.2023/✍️
लखनऊ: देश में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) ने समान नागरिक संहिता (UCC) का विरोध किया है. AIMPLB ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर एक ड्राफ्ट तैयार किया और बुधवार को लॉ कमीशन को भेज दिया. बोर्ड के प्रवक्ता कासिम रसूल इलियास ने बताया कि बोर्ड की कार्यसमिति ने गत 27 जून को UCC को लेकर तैयार किए गए प्रतिवेदन के मसौदे को मंजूरी दी थी, जिसे आज ऑनलाइन माध्यम से हुई बोर्ड की साधारण सभा में विचार के लिए पेश किया गया. उन्होंने बताया कि बैठक में इस प्रतिवेदन को सर्वसम्मति से अनुमोदित किया गया. उसके बाद इसे विधि आयोग को भेज दिया गया है.
विधि आयोग ने यूसीसी पर आपत्तियां दाखिल करने के लिए 14 जुलाई तक का वक्त दिया
बता दें कि विधि आयोग ने यूसीसी पर विभिन्न पक्षकारों और हितधारकों को अपनी आपत्तियां दाखिल करने के लिए 14 जुलाई तक का वक्त दिया है. हालांकि बोर्ड ने इसे छह महीने तक बढ़ाने की गुजारिश की थी. बोर्ड द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक यूसीसी को लेकर विधि आयोग के समक्ष प्रस्तुत आपत्ति में बोर्ड ने कहा है कि आयोग की तरफ से इस सिलसिले में जारी की गई नोटिस अस्पष्ट और बेहद साधारण सी है.
Important letter from the Secretary General of @AIMPLB to the Secretary of the Law Commission of India.@MLJ_GoI#UCC pic.twitter.com/x61j5HwvZC
— All India Muslim Personal Law Board (@AIMPLB_Official) June 28, 2023
आयोग ने अपनी मंशा का कोई ब्लूप्रिंट सामने रखे बगैर फिर से इस पर जनमत मांगा है
इसमें कह गया है कि आयोग इससे पहले भी यूसीसी को लेकर जनमत ले चुका है और उस वक्त वह इसी निष्कर्ष पर पहुंचा था कि यूसीसी न तो आवश्यक है और ना ही वांछित, ऐसे में आयोग ने अपनी मंशा का कोई ब्लूप्रिंट सामने रखे बगैर फिर से इस पर जनमत मांगा है, जिसका औचित्य नहीं है. बोर्ड ने अपने प्रतिवेदन में भारत के बहुलतावादी सिद्धांतों, व्यापक विविधता और बहुसांस्कृतिक प्रकृति का जिक्र किया है.
बोर्ड ने प्रतिवेदन में कहा- देश में विविध पर्सनल लॉ लागू, संविधान के अधिकारों के तहत संरक्षित हैं
बोर्ड ने प्रतिवेदन में कहा है कि देश में विभिन्न समुदायों के विविध पर्सनल लॉ लागू हैं जो भारत के संविधान में वर्णित धार्मिक-सांस्कृतिक अधिकारों के तहत संरक्षित हैं. बोर्ड ने प्रतिवेदन में कहा है कि भारत का संविधान अपने आप में समानतापूर्ण नहीं है और इसमें विभिन्न समुदायों के लिए अलग-अलग सामंजस्य किए गए हैं. विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग आचरण तय किए गए हैं और विभिन्न समुदायों को उनसे संबंधित विभिन्न अधिकार दिए गए हैं.
बोर्ड ने प्रतिवेदन में कहा, यूनिफॉर्म सिविल कोड जटिलताओं से भरा है
बोर्ड ने प्रतिवेदन में कहा, “यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है इसका जवाब भले ही आसान लगता हो, लेकिन यह जटिलताओं से भरा है. वर्ष 1949 में जब यूसीसी पर संविधान सभा में चर्चा हुई थी तब ये जटिलताएं उभर कर सामने आई थी और मुस्लिम समुदाय ने भी इसका पुरजोर विरोध किया था. उस वक्त डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के स्पष्टीकरण के बाद वह विवाद समाप्त हुआ था. अंबेडकर ने कहा था यह बिल्कुल संभव है कि भविष्य की संसद एक ऐसा प्रावधान कर सकती है कि संहिता सिर्फ उन्हीं लोगों पर लागू होगी जो इसके लिए तैयार होने की घोषणा करेंगे, इसलिए संहिता को लागू करने की शुरुआती स्थिति पूरी तरह से स्वैच्छिक होगी.”
बैठक में बोर्ड के 251 में से लगभग 250 सदस्य शामिल हुए
इलियास ने बताया कि बैठक में बोर्ड के 251 में से लगभग 250 सदस्य शामिल हुए. बैठक में सभी सदस्यों से कहा गया कि वे व्यक्तिगत रूप से भी विधि आयोग में यूसीसी के खिलाफ अपनी बात रखें और अपने रिश्तेदारों और दोस्तों और अन्य लोगों से भी ऐसा करने को कहें. उन्होंने बताया कि बोर्ड का कहना है कि यूसीसी के दायरे से सिर्फ आदिवासियों ही नहीं, बल्कि हर धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग को अलग रखा जाना चाहिए.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हमेशा से यूसीसी के खिलाफ रहा
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हमेशा से यूसीसी के खिलाफ रहा है. उसका कहना है कि भारत जैसे बहुत सांस्कृतिक और बहुधार्मिक देश में यूसीसी के नाम पर एक ही कानून थोपा जाना लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है. विधि आयोग ने पिछली 14 जून को यूसीसी को लेकर सुझाव और आपत्तियां आमंत्रित करने की प्रक्रिया शुरू की थी, जिन्हें आगामी 14 जुलाई तक आयोग के सामने दाखिल किया जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम में यूसीसी की पुरजोर वकालत की थी.