छत्तीसगढ़ में पूरे शरीर पर गुदवा लिया भगवान राम का नाम, नहीं देखा होगा रामजी का ऐसा भक्त

Toran Kumar reporter..30.5.2023/✍️

संभवत: देश और दुनिया में छत्तीसगढ़ के अलावा दूसरा कोई ऐसा इलाका नहीं हेागा जहां के लोगों के दिल ही नहीं रोम-रोम में राम बसे हैं. इस वर्ग के लोगों के पूरे शरीर पर राम नाम दर्ज होता है और वे जो कपड़े पहनते हैं उन पर भी राम दर्ज होता है. आमतौर पर गोदना हमेशा सीमित दायरे में ही रहा. वहीं छत्तीसगढ़ में एक ऐसा संप्रदाय है जिसने राम के नाम को अपने भीतर ऐसे समा लिया और राम के नाम में इतनी गहराई से डूबे कि अपने सारे अंगों में राम के नाम का गोदना करा लिया. वस्त्र राम नाम से रंग लिया.

राम के रंग में रंग लिया
रामनामी संप्रदाय ने पूरी तरह अपने को राम के रंग में रंग लिया है. उनका पूरा जीवन अपने आराध्य की भक्ति में लीन है. उनका मानना है कि उनके भगवान भक्त के बिना अधूरे हैं. सच्चे भक्त की खोज भगवान को भी होती है. छत्तीसगढ़ में यह पद्य बहुत चर्चित है कि हरि का नाम तू भज ले बंदे, पाछे में पछताएगा जब प्राण जाएगा छूट. रामनामी संप्रदाय के हिस्से में इस पछतावे के लिए जगह ही नहीं है क्योंकि उनका हर पल राम के नाम में लिप्त है. ना केवल राम का नाम अपितु आचरण भी वे अपने जीवन में उतारते हैं.

छत्तीसगढ़ का है ये संप्रदाय
छत्तीसगढ़ के रामनामी संप्रदाय के रोम-रोम में भगवान राम बसते हैं. तन से लेकर मन तक भगवान राम का नाम है. इस समुदाय के लिए राम सिर्फ नाम नहीं बल्कि उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. ये राम भक्त लोग ‘रामनामी’ कहलाते हैं. राम की भक्ति भी इनके अंदर ऐसी है कि इनके पूरे शरीर पर राम नाम का गोदना गुदा हुआ है. शरीर के हर हिस्से पर राम का नाम, बदन पर रामनामी चादर, सिर पर मोरपंख की पगड़ी और घुंघरू इन रामनामी लोगों की पहचान मानी जाती है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की भक्ति और गुणगान ही इनकी जिंदगी का एकमात्र मकसद है.

संप्रदाय के पांच प्रतीक
रामनामी संप्रदाय के पांच प्रमुख प्रतीक हैं. ये हैं भजन खांब या जैतखांब, शरीर पर राम-राम का नाम गोदवाना, सफेद कपड़ा ओढ़ना, जिस पर काले रंग से राम-राम लिखा हो, घुंघरू बजाते हुए भजन करना और मोरपंखों से बना मुकट पहनना. रामनामी समुदाय यह बताता है कि श्रीराम भक्तों की अपार श्रद्धा किसी भी सीमा से ऊपर है. प्रभु राम का विस्तार हजारों पीढ़ियों से भारतीय जनमानस में व्यापक है.

सतनाम पंथ के हैं अनुयायी
कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ के पूर्वी और मैदानी क्षेत्रों में सतनाम पंथ के अनुयायी सतनामी समाज के लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं. तत्कालीन समय में जब समाज में कुरीतियां काफी व्याप्त थीं, मंदिरों में प्रवेश पर कई तरह के प्रतिबंध थे, ऐसे समय में सतनामी समाज के ही एक सदस्य वर्तमान में जांजगीर-चांपा जिले के अंतर्गत ग्राम चारपारा निवासी श्री परशुराम ने रामनामी पंथ शुरू की थी ऐसा मानना है. यह समय सन 1890 के आस-पास मानी जाती है.

पूरे शरीर पर गुदा है राम नाम
रामनामी समाज के लोगों के अनुसार शरीर में राम-राम शब्द अंकित कराने का कारण इस शाश्वत सत्य को मानना है कि जन्म से लेकर और मृत्यु के बाद भी पूरे देह को ईश्वर को समर्पित कर देना है. राम को ईष्ट देव मानकर रामनामी जीवन-मरण को जीवन के वास्तविक सार को ग्रहण करते हैं. इसी वास्तविकता को मानते हुए रामनामी समाज के लोग सम्पूर्ण शरीर में गोदना अंकित कर अपने भक्ति-भाव को राम को समर्पित करते हैं.

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