रामचरित मानस में एक जगह लिखा है, ‘आवत ही हरषत नहीं, नयनन नहीं सनेह, तुलसी तहां ना जाइए चाहे कंचन बरसे मेह।’ यश चोपड़ा जितने विनम्र थे, जितनी इज्जत अपने साथी कलाकारों और अपने स्टूडियो आने वालों को देते थे, वे सब पुरानी बातें हैं।
रामचरित मानस में एक जगह लिखा है, ‘आवत ही हरषत नहीं, नयनन नहीं सनेह, तुलसी तहां ना जाइए चाहे कंचन बरसे मेह।’ यश चोपड़ा जितने विनम्र थे, जितनी इज्जत अपने साथी कलाकारों और अपने स्टूडियो आने वालों को देते थे, वे सब पुरानी बातें हैं।