जैसे-जैसे दुनिया सतत विकास के लक्ष्य की ओर बढ़ रही है, नई टेक्नॉलजी को जमीन पर उतारने में एक-एक कर सफलता भी मिलती जा रही है। दुनियाभर में ऊर्जा की जरूरत के लिए अब तक कोयले और कुछ हद तक सौर-पवन ऊर्जा जैसे माध्यमों पर निर्भरता कम करने और पहले से कहीं ज्यादा क्लीन एनर्जी पैदा करने के लक्ष्य के साथ 35 देश साथ आए हैं। फ्रांस में इंटरनैशनल थर्मोन्यूक्लियर फ्यूजन एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) Tokamak बनाया जा रहा है जिसका लक्ष्य यह पता लगाना है कि भविष्य में वैश्विक ऊर्जा स्रोत के तौर पर न्यूक्लियर फ्यूजन का इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं। अब इस रिएक्टर की असेंबली मंगलवार को फ्रांस में शुरू हो गई है। इस मौके पर भारत समेत ITER के कई सदस्य देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। आइए आपको बताते हैं क्या है ITER और कैसे भारत इसमें एक अहम योगदान निभा रहा है…
यह रिएक्टर एक एक्सपेरिमेंट है जिससे आम लोगों तक ऊर्जा नहीं पहुंचाई जाएगी लेकिन यह ऐसा मॉडल है जिसके सफल होने पर यह पता लगाया जा सकेगा कि कैसे कमर्शल ऊर्जा उपलब्ध करने के लिए ऐसे ही रिएक्टर्स को सटीकता से बनाया जा सकता है। ITER का लैटिन में मतलब भी है ‘रास्ता’ और इस एक्सपेरिमेंट से बेहतर ऊर्जा के लिए नया रास्ता तैयार किया जा रहा है।Tokamak एक ऐसी डिवाइस है जो मैग्नेटिक फील्ड की मदद से न्यूक्लियर फ्यूजन जनरेट करती है। पारंपरिक तरीकों की जगह फ्यूजन रिएक्शन को ऊर्जा उत्पादन के लिए इस्तेमाल किए जा सकता है या नहीं, इसे लेकर ही ITER यह एक्सपेरिमेंट कर रहा है। खास बात यह है कि यही न्यक्लियर रिएक्शन सितारों में होता है तो एक तरह से ITER धरती पर ही सितारा बना रहा है।
न्यूक्लियर फ्यजून रिएक्शन से 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस का तापमान पैदा होता है। इसकी वजह से ऐसा प्लाज्मा पैदा होता है जिसमें हाइड्रोजन के आइसोटोप्स (ड्यूटीरियम और ट्राइटियम) आपस में फ्यूज होकर हीलियम और न्यूट्रॉन बनाते हैं। शुरुआत में रिएक्शन से गर्मी पैदा हो, इसके लिए ऊर्जा की खपत होती है लेकिन एक बार रिएक्शन शुरू हो जाता है तो फिर रिएक्शन की वजह से ऊर्जा पैदा भी होने लगती है। ITER पहला ऐसा रिएक्टर है जिसका उद्देश्य है कि न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन के शुरू होने में जितनी ऊर्जा इस्तेमाल हो, उससे ज्यादा ऊर्जा रिएक्शन की वजह से बाद में उत्पाद के तौर पर निकले।
पारंपरिक ईंधनों और अक्षय ऊर्जा के स्रोतों के अलावा अभी दुनिया में कई न्यूक्लियर फिशन रिएक्टर्स काम कर रहे हैं लेकिन इनके साथ एक बड़ा खतरा होता है लीक और रेऐक्टिव वेस्ट का। फ्यूजन रिएक्टर में वेस्ट बेहद कम होता है और ये रिएक्शन अपने-आप में इतना मुश्किल होता है कि इसका लीक होना मुश्किल है। वहीं, कोयले जैसे ईंधन के सिर्फ सीमित संसाधन पृथ्वी पर बचे हैं बल्कि उनकी वजह से कार्बन उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग का एक बड़ा कारण है। दूसरी ओर अक्षय ऊर्जा अभी भी वैश्विक स्तर पर ईंधन के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल नहीं की जा सकी है।
ITER पहली ऐसी डिवाइस होगी जो लंबे वक्त तक फ्यूजन रिएक्शन जारी रख सकेगी। ITER में इंटिग्रेटेड टेक्नॉलजी और मटीरियल को टेस्ट किया जाएगा जिसका इस्तेमाल फ्यूजन पर आधारित बिजली के कमर्शल उत्पादन के लिए किया जाएगा। बड़े स्तर पर अगर कार्बन-फ्री स्रोत के तौर पर यह एक्सपेरिमेंट सफल हुआ तो भविष्य में क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में दुनिया को अभूतपूर्व फायदा हो सकता है। पहली बार 1985 में इसका एक्सपेरिमेंट का पहला आइडिया लॉन्च किया गया था। ITER की डिजाइन बनाने में इसके सदस्य देशों चीन, यूरोपियन यूनियन, भारत, जापान, कोरिया, रूस और द यूनाइटेड्स के हजारों इंजिनियरों और वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभाई है।
भारत इस एक्सपेरिमेंट से 2005 में जुड़ा था। लार्सन ऐंड टूब्रो हेवी इंजिनियरिंग ने 4 हजार टन की स्टेनलेस स्टीन से बनी क्रायोस्टैट की लिड तैयार की है। इसके अलावा भारत अपर-लोअर सिलिंडर, शील्डिंग, कूलिंग सिस्टम, क्रायोजेनिक सिस्टम, हीटिंग सिस्टम्स बना रहा है। क्रायोस्टैट 30 मीटर ऊं
चा और 30 मीटर डायमीटर का सिलिंडर है जो विशाल फ्रिज की तरह काम करेगा और फ्यूजन रिएक्टर को ठंडा करने का काम करेगा। यह दुनिया में अपनी तरह का सबसे विशाल वेसल है। L&T के अलावा भारत की 200 कंपनियां और 107 वैज्ञानिक इस प्रॉजेक्ट से जुड़े हुए हैं।
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